Sanotra Vansh Kul Devta Baba Timar Ling Ji
Sanotra Vansh Kul Devi Mata Jivni Devi Ji
Sanotra Vansh Jathere
Devi Nagar, G.T. Road, Ambala City (Hr.)
Annual Mela - 1st Wednesday of Asharh Month
Mandir Sanotra Vansh Parbandhak Comettee
President
Sh. Hans Raj
Mo. : 93502-68883
Vice President
Sh. Ashok Sanotra
Mo. : 98142-67070
Secretary
Sh. Surinder Mehra
Mo. : 93136-34464
Vice Secretary
Sh. Deepak Kumar
Mo. : 98147-91067
Cashier
Smt. Parveen Sanotra
Mo. : 90348-02504
Cashier
Smt. Sunayna Sanotra
Mo. : 89509-16263
सनोत्रा वंश के रीति-रिवाज
1. सनोत्रा वंश की बहुएं और लडक़े काला कपड़ा नहीं पहनेंगे।
2. बहुएं कांच की चूड़ीयां नहीं पहनेंगी।
3. मेहन्दी झूठी करके लगानी है।
4. बड़ों के सरूप के आगे पूरा सिर ढककर बैठेंगी।
5. बड़ों का दिन बुधवार है, चिराग जरूर करें।
शादी के बाद तरागों की विधि –
बड़ों का सरूप, बेरी की टहनी, सुरमेदानी, मदानी, भठोरू, खिचड़ी फीकी चने की दाल की
(भठोरू बनाने की विधि आगे बताई गई है)
तरागों की रस्म पूरे परिवार ने सुच्चे मुंह करनी है। बड़ों को भोग लगाना है, पांच भठोरू, खिचड़ी और कुछ पैसे, दो भठोरू बड़ों के नाम के नये जोड़े ने माथा टेक कर भठोरू और खिचड़ी झोली में डलवाना है। परिवार के हर सदस्य को पांच-पांच भठोरू, खिचड़ी और दो-दो भठोरू मुंह झूटाली के देने हैं। इन रस्मों में हंसी-मजाक भी होता है।
घर के जवाइयों की तरफ से, उनकी कोशिश खिचड़ी झूठी करने की होती है, खिचड़ी को झूठा होने से बचाना है।
लड़कियां बन्धन-मुक्त हैं।
शादी में बारात जाने से पहले दूल्हे को चने की दाल की खिचड़ी और दही से मुंह झुठाना है।
रीतों की विधि –
भठोरू, खिचड़ी, बड़ों के सरूप, सुरमेदानी, मदानी, मांह साबत, चावल कच्चे।
दिन चढऩे के बाद बहुएं मेहन्दी नहीं लगाएंगी, नई चीज खरीद कर नहीं पहनेंगी, आठवें महीने रीतें चढ़ेंगी, अमावस्या के आवठें दिन
सबसे पहले अपने बड़ों के पांच भठोरू, खिचड़ी, कुछ पैसे का भोग लगाना है। उसके बाद दुल्हन मायके से लाया हुआ समान बड़ों के सामने रख कर मनसेगी। वही समान दुल्हन ने पहन कर बड़ों के सामने बैठना है। उसके बाद सास जूट और शगुन, भठोरू दुल्हन की झोली में डालेगी और उसका मुंह झूठालेगी। फिर सबने मुंह झूठा करना है। पांच-पांच भठोरू और खिचड़ी, दो-दो भठोरू मुंह झूठाली के। लड़कियों के पैसे निकालने हैं। रीतों के बाद बहू नया समान लगा-पहन सकती है। रीतें लेने के लिए दुल्हन को मायके वाले लेने आयेंगे और सास-ससुर लेने जायेंगे।
पहले बच्चे के जन्म के बाद चौंके चढ़ाने की विधि –
मिट्टी का दीया
गाय के गोबर से विद माता बनानी है। मोरी वाला पैसा, कौड़ी गले में डालनी है। आधा मीटर लाल कपड़ा ओढऩा है। मोरा वाला पैसा और कौड़ी बच्चे के गले में डालनी है कुछ समय के लिए, बाद में उतार लेना है।
अगर पहला बच्चा लडक़ा है तो सवा पांच किलो गुड़ मनस कर शरीके में बांटना है और कड़ाह प्रशाद भी बनाना है।
(शरीके की रोटी पहुंच के अनुसार)
पहला बच्चा लडक़ी है तो चौंके चढ़ाने पर 5 रोटियां, मांह की दाल की खिचड़ी और ऊपर कड़ाह प्रशाद रख कर देना है। 2-2 उजारन शरीके में देने हैं।
जो विद माता बनती है उसको अगले दिन जल प्रवाह करना है। रीतों और तरागों में हाथ में चावल लेकर उसमें थोड़ा पानी डालकर अपने बड़ों और दीये को छींटा देकर माथा टेकना है। लडक़ा होने पर लाल रंग की डोरी, पांच या सात चांदी के मोती, कांच के सतरंगे मोती की तड़ागी बनानी है।
चौंके चढऩे के समय विद माता के पास रखनी है और सवा महीने पर गेहूं की कुंगनियां बना कर थोड़ा गुड़ साथ लेकर कुएं के पास माथा टेकना है ख्वाजा जी को और यही सबकों बांटना है.
चौंके चढऩे पर मां के कपड़े मायके वालों के होते हैं।
भठोरू बनाने के विधि –
बड़ो का मनपसन्द भोग भठोरू ही है, लेकिन आज कल लोग सुविधा अनुसार पूड़ी कड़ाह बनाने लग गये हैं जो कि गलत है। उनको जो भोग लगता है वही लगाना चाहिए। भठोरू बनाने के लिए एक दिन पहले शाम को आटा गूंथना चाहिए। अनुमान के तौर पर 10 किलो आटा, 5 किलो गुड़, 80 ग्राम मीठा सोडा, गुड़ चाशनी बना के गर्म ही आटे में डालनी है। मीठा सोडा डालकर के आटा गूंथना है। आटे भटूरे जैसा बनाना जो कि हाथ से आराम से पूरी बन जाए। आटे को खुले बर्तन में डाल के रखना है क्योंकि रात को फूलता है। सुबह सुबह भठोरू सरसों के तेल में निकलें।
यह सारे तथ्य बड़े बजुरगों से लिए गये हैं जो कि परम्परागत है।
देवी नगर अंबाला शहर में श्रद्धा से मनाया गया स्नोत्रा वंश का वार्षिक मेला
अंबाला, 16-6-2021 (क.क.प.) – स्नोत्रा वंश के कुल देवता का वार्षिक मेला 16 जून 2021 दिन बुधवार को देवी नगर के प्रांगण में स्नोत्रा वंश के मंदिर में बहुत ही श्रद्धा के साथ मनाया गया। मंदिर कमेटी के प्रधान श्री हंस राज जी की अध्यक्षता में स्नोत्रा वंश मंदिर कमेटी के सदस्यों ने कोरोना नियमों का पालन करते हुए इस साल का मेला मनाया। सुबह कमेटी मैंबर्स की मौजूदगी में कुल देवता की पूजा की गई। इसके बाद दिन चढऩे के साथ ही संगत का आना शुरू हो गया। संगत अपने कुल देवता के मंदिर में माथा टेक कर उनका आशीर्वाद ले रही थी। पिछले साल कोरोना के कारण वार्षिक मेला नहीं हो पाया था और इस साल भी कोरोना के कारण कुछ पाबंदियों के साथ मेला करवाया गया। स्नोत्रा वंश का वार्षिक मेला हर साल आषाढ़ महीने के पहले बुधवार को मनाया जाता है।
इस मेले के दौरान दिल्ली से महामाई के भगत सुरिन्द्र मेहरा ने मां भगवती और कुल देवता की महिमा में भजन गायन करते हुए अपनी हाजरी लगवाई। संगत ने भी उनका पूरा साथ दिया। इस बार उत्तरी दिल्ली से पूर्व मेयर स. अवतार सिंह स्नोत्रा भी विशेष तौर पर कुल देवता के दरबार में हाजरी लगवाने के लिए पहुंचे। उन्होंने देवी नगर प्रांगण में बन रहे लंगर हाल के 21 हजार रुपए का सहयोग कश्यप राजपूत पंजाबी वैल्फेयर सोसायटी (रजि.) को दिया। देवी नगर के मंदिरों का प्रबंध देख रही कश्यप राजपूत पंजाबी वैल्फेयर सोसायटी के प्रधान श्री सुरिन्द्र भगोत्रा, कैशियर श्याम सुंदर जोग, बनारसी दास बिल्ला और अन्य कमेटी मैंबर भी इस मौके पर मौजूद थे। इस दौरान आई हुए संगत के लिए भंडारे का पूरा प्रबंध किया गया था जिसका सभी ने आनंद लिया।
स्नोत्रा वंश मंदिर प्रबंधक कमेटी की ओर से प्रधान श्री हंस राज, उप-प्रधान अशोक स्नोत्रा, सेक्रेटरी सुरिन्द्र मेहरा, सेक्रेटरी दीपक कुमार, कैशियर श्रीमति प्रवीण स्नोत्रा, श्रीमति सुनयना स्नोत्रा और कमेटी सदस्यों ने बहुत ही अच्छे ढंग से पूरे मेला को आयोजित किया और अपने कुल देवता का आशीर्वाद लिया। शाम को सारा काम निबटा कर सभी सदस्य अपने घरों को वापिस लौट आए।